Tikdam Movie Story; Amit Sial Interview | Vivek Anchalia | उत्तराखंड की वादियों में हुई फिल्म ‘तिकड़म’ की शूटिंग: अमित सियाल बोले- हम 30-40 दिन गांव में रहे, नई दुनिया से सामना हुआ

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16 घंटे पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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अमित सियाल स्टारर फिल्म तिकड़म 23 अगस्त को जियो सिनेमा पर स्ट्रीम की गई है। इस फिल्म का डायरेक्शन विवेक अंचालिया ने किया है। यह उनके डायरेक्शन में बनी पहली फिल्म है।

अमित सियाल ने इस फिल्म से जुड़े एक्सपीरियंस दैनिक भास्कर के साथ साझा किए। उन्होंने कहा है कि इस फिल्म में प्रवासी मजदूरों की जिंदगी को बहुत ही खूबसूरत तरीके से दिखाया गया है।

अमित सियाल ने यह भी बताया कि इस फिल्म की शूटिंग उन्होंने नैनीताल के पास के एक गांव में की थी, जहां पूरी टीम 30-40 दिन रुकी थी।

इस फिल्म में अमित ने सबसे ज्यादा स्क्रीन स्पेस बच्चों के साथ शेयर किया है। इस पर उनका कहना है कि शूटिंग के दौरान बच्चों के साथ काम करना बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं था। हालांकि एक्टर्स को बच्चों के हिसाब से ही एक्ट करना पड़ता है।

अमित सियाल के साथ बातचीत का सिलसिला शुरू करते हैं….

सवाल- आपके लिए फिल्म तिकड़म कितनी मायने रखती है?
जवाब-
इस तरह की फिल्म से जुड़ना बहुत ही महत्वपूर्ण है। फिल्म में ड्रामा के साथ-साथ ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे मुद्दे पर भी बात की गई है। फिल्म में प्रवासी मजदूरों की जिंदगी को भी बहुत ही खूबसूरत एंगल के साथ दिखाया गया है। कुल-मिलाजुला कर यह एक फैमिली एंटरटेनर फिल्म है।

इस फिल्म में दर्शकों को मेरा नया किरदार देखने को मिलेगा। मैं लंबे वक्त से इस फिल्म की रिलीज का इंतजार कर रहा था क्योंकि यह बिल्कुल अलग तरह की फिल्म है। मैं इस तरह का किरदार करना भी चाह रहा था।

सवाल- क्या इस फिल्म में काम करना थोड़ा चैलेजिंग रहा?
जवाब-
हां, ऐसा कुछ हद तक रहा है। एक कलाकार का यह धर्म होता है कि जो भी स्क्रिप्ट पर लिखा हो, वो उसे ठीक उसी तरह पर्दे पर उतारे। मेरी कोशिश रहती है कि एक्टिंग ऐसी करूं जो पर्दे पर नेचुरल लगे, लेकिन उसके लिए मेहनत पूरी शिद्दत से करनी पड़ती है। यह थ्योरी हर किस्म के किरदार पर लागू होती है।

इस फिल्म की शूटिंग हमने नैनीताल के पास में एक गांव में की है। यहां हम सभी 30-40 दिन रुके थे। इस जगह पर कुछ भी फैंसी नहीं था। सब साथ में रहते थे, खाते थे। एक तरह से हम भी उसी गांव के हो गए थे। वहां पर हमारा सामना एक नई दुनिया से हुआ था और वो दुनिया बहुत सुखदाई थी। यह एक शानदार अनुभव था।

सवाल- फिल्म में बच्चों के साथ शूट करना कितना मुश्किल रहा?
जवाब-
मैंने पहले बच्चों के साथ बहुत सारे ऐड शूट किए थे। जब मैंने पहला ऐड किया था, तब यह अनुभव किया था कि हमें बच्चों के हिसाब से एक्टिंग करनी पड़ती है। हमारे हिसाब से बच्चे एक्टिंग नहीं कर सकते हैं। उनके अपने नखड़े होते हैं।

फिल्म के डायरेक्टर विवेक ने जब इस फिल्म का छोटा सा सैंपल भेजा था, तभी मैंने इस फिल्म को करने का मूड बना लिया था। उन्होंने सैंपल को एनिमेटेड फॉर्म में भेजा था, जिसे देखते ही मेरी आंखें ठहर गई थीं। वैसे भी इंटेस लुक से कुछ अलग करना चाहता था।

जब मैं पहले दिन सेट पर पहुंचा तो डायरेक्टर ने पहले ही बच्चों के साथ बहुत ज्यादा मेहनत कर ली थी। इस वजह से मुझे कोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ी। हालांकि बच्चे मुझे बहुत पसंद हैं। उनके साथ बातें करना, खेलना और चिढ़ाना बहुत पसंद है।

मैं उनके साथ बच्चों की तरह नहीं बल्कि एडल्ट की तरह बिहेव करता हूं। वह लोग भी मेरे साथ एडल्ट की तरह ही बिहेव करने लगते हैं, जो देखने में बहुत क्यूट लगता है।

सवाल- पहाड़ों में शूट करना कितना खूबसूरत था?
जवाब-
अरे वो तो मैजिकल था। हर पल मौसम बदल रहा था। कभी बादल आ रहे थे, कभी जा रहे थे। हालांकि इस वजह से शूट करना मुश्किल भी हो रहा था। खैर हमने भी मौसम से खेलना सीख लिया था।

शहर में रहने की वजह से यह एहसास ही नहीं होता कि पहाड़ों पर रहने का अनुभव कैसा होता है। मेट्रोपॉलिटन सिटी चकाचौंध से भरी रहती है। लेकिन पहाड़ों पर शांति होती है, जिससे आपका माइंड भी फ्रेश रहता है।

जहां हम शूटिंग कर रहे थे, वहां मेट्रोपॉलिटन सिटी की तुलना में रिसोर्सेज की कमी है। शायद पैसों की भी कमी होगी। लेकिन वहां के निवासियों के चेहरे पर इसका दर्द नहीं दिखता। जितना उनके पास है, वे लोग उसी में खुश हैं। वे लोग आसानी से हमारे साथ घुलमिल गए थे। हमारे लिए वे लोग अपने खेत से फल-सब्जियां लेकर आते थे। अपनी फेमस डिशेज भी हमें खिलाते थे।

सवाल- आपको खुद को इस तरह के किरदार में ढालने के लिए किस प्रोसेस से गुजरना पड़ा?
जवाब-
सच बताऊं तो फिल्म की स्क्रिप्ट मिलना ही पहला प्रोसेस था। आपको फिल्म देखने के बाद यह बात समझ में आ जाएगी कि कोई दिमाग से पैदल ही होगा, जो इसको रिजेक्ट करता। उस वक्त मुझे इस तरह का काम चाहिए भी था।

सबसे पहला प्रोसेस मूंछ को लेकर शुरू हुआ था। फिल्म के किरदार को ध्यान में रखते हुए मैंने बहुत रिसर्च किया। इसके बाद मेरे दिमाग में हिटलर जैसी छवि बनी। लेकिन मैं एकदम हिटलर जैसी भी मूंछ नहीं रखना चाहता था। इसी वजह से मैंने इसे थोड़ा खुद से रिफॉर्म कर दिया।

डायरेक्टर ने भी मुझे इस लुक में देखकर ओके कर दिया था। इसके बाद डायरेक्टर ने कहा कि मैं इस फिल्म के हर सीन में चेहरे पर मुस्कान बनाए रखूं। कुछ दिन बाद उन्होंने मुझसे कहा कि मैं रियल लाइफ में भी ऐसा बिहेव करूं, जो मुझे थोड़ा बचकाना सा लगा। फिर डायरेक्टर ने मुझे समझाया कि जहां पर हम शूट कर रहे, वहां के लोगों ऐसे ही रहते हैं। वे लोग अपनी दुख भरी बातें भी बहुत सलीके और चेहरे पर बिना सिकन लाए कहते हैं।

सवाल- क्या शूटिंग के पहले दिन ही आपको एहसास हो जाता है कि फिल्म के आगे की जर्नी कैसे होगी?
जवाब-
हां थोड़ा बहुत एहसास हो जाता है। पहले से बहुत सारी चीजें बदल गई हैं। अब एक स्क्रिप्ट पर कई बार डिस्कशन होते हैं, जिससे आपको समझ में आ जाता है कि यह फिल्म चलेगी या नहीं।

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