R. Jagannathan’s column – NDA has won, not BJP | आर. जगन्नाथन का कॉलम: जीत एनडीए को मिली है, भाजपा को नहीं

Admin@KhabarAbhiTakLive
6 Min Read


15 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक
आर. जगन्नाथन
स्वराज्य मैगजीन के एडिटोरियल डायरेक्टर - Dainik Bhaskar

आर. जगन्नाथन स्वराज्य मैगजीन के एडिटोरियल डायरेक्टर

भले ही 2024 में 2004 जैसा चौंकाने वाला परिणाम न आया हो, लेकिन अपने दम पर बहुमत का न मिलना भाजपा के लिए एक झटका होगा। दो दिन पहले ही एग्जिट पोल में उसे एकतरफा जीत मिलने की घोषणाएं की गई थीं। लेकिन नतीजे दिखाते हैं कि एग्जिट पोल मतदाताओं के मूड को बुरी तरह से गलत पढ़ सकते हैं।

चुनाव नतीजों की सबसे बड़ी सुर्खी यही है कि एनडीए ने जीत हासिल की है, भाजपा ने नहीं। 2014 और 2019 के विपरीत अब उसके पास अपना बहुमत नहीं है। दूसरी सुर्खी यह है कि ब्रांड-मोदी यूपी और महाराष्ट्र जैसे बड़े और अहम राज्यों में परिणाम नहीं दे पाया है। भाजपा ने गुजरात में भी कुछ मतदाताओं का समर्थन गंवाया है, और उसके बजाय शिवराज सिंह चौहान का मध्य प्रदेश नया किला साबित हुआ है।

क्षेत्रीय क्षत्रपों से करना होगा मेलजोल

भाजपा को असली लाभ तो पूर्वी क्षेत्र में मिला है, तेलंगाना और खास तौर पर ओडिशा में, जहां वह विधानसभा में बहुमत वाली पार्टी के तौर पर नवीन पटनायक की जगह लेगी। आंध्र प्रदेश और बिहार में उसके सहयोगियों ने अपना संख्या-बल बढ़ाया है। जो हमें हमारी तीसरी सुर्खी देता है : मोदी को चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार जैसे मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ मिलकर गठबंधन चलाना होगा।

भाजपा के पास पहले से कम शक्ति होगी। लेकिन असली सरप्राइज पैकेज तो कांग्रेस के लिए था। उसने न केवल अपनी सीटों की संख्या 100 के आसपास पहुंचा दी, बल्कि यूपी में भी अपनी स्थिति कायम रखी। उसके उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा ने अमेठी में स्मृति ईरानी को हरा दिया। राजस्थान, हरियाणा और यूपी में सीटें हासिल करने के बाद कांग्रेस को अब हिंदी पट्टी में खत्म नहीं माना जा सकता।

सत्ता-विरोधी लहर आज भी एक फैक्टर

इस चुनाव ने दो और बातें साबित की हैं। पहली यह कि भारतीय राजनीति में ‘एंटी-इनकम्बेंसी’ (सत्ता-विरोधी लहर) आज भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर है, जो नरेंद्र मोदी से लेकर नवीन पटनायक जैसे कद्दावर नेताओं को भी कमजोर कर सकती है। तेलंगाना में बीआरएस न केवल 2023 में विधानसभा चुनाव हार गई थी, बल्कि आज लोकसभा की दौड़ में भी कहीं नहीं है। आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी को कभी अपराजेय माना जाता था, लेकिन उन्हें चंद्रबाबू नायडू ने करारी शिकस्त दी है।

दूसरी बात बात जो ध्यान देने लायक है, वह है विपक्ष के सहयोगी दलों द्वारा अपने बीच स्पष्ट वोट-ट्रांसफर को सुनिश्चित करना। यूपी में अल्पसंख्यक वोट सपा और कांग्रेस के पक्ष में एकजुट हुए। कुछ सबूत हैं कि दलितों ने भी इस गठबंधन के लिए बड़ी संख्या में वोट दिया। क्या यह इस झूठे प्रचार के कारण था कि भाजपा नौकरियों में आरक्षण समाप्त कर देगी? बसपा का निरंतर पतन बताता है कि दलित नए विकल्प तलाश रहे हैं।

एक चेहरे से अब बात नहीं बनेगी

यूपी में बहुचर्चित डबल-इंजन वाली सरकार सपा-कांग्रेस गठजोड़ के बाद दूसरे क्रम पर आ गई है, लेकिन भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह योगी आदित्यनाथ की विफलता कम और उनकी सरकार में केंद्र की दखलंदाजी का नतीजा अधिक है। योगी की प्रतिष्ठा फिर से बन सकती है, अगर उन्हें राज्य को अपनी मर्जी से चलाने की पूरी आजादी दी जाए। अफवाह यह है कि उनके कई उम्मीदवारों को भाजपा आलाकमान ने नकार दिया था।

भाजपा के लिए संदेश स्पष्ट है- हर बार जीत हासिल करने के लिए केवल एक बड़े नेता पर निर्भर रहने से बात नहीं बनेगी। उसे राज्य के नेताओं को अपने दम पर उभरने और फलने-फूलने का मौका देना चाहिए। शिवराज सिंह चौहान के संसदीय राजनीति में जाने से मध्य प्रदेश पर भले असर नहीं पड़ा हो, लेकिन वसुंधरा राजे को दरकिनार किए जाने से राजस्थान में नुकसान हो सकता है। नतीजों के बाद मोदी पाएंगे कि उन्हें अपने गठबंधन-सहयोगियों को समायोजित करते हुए पार्टी में अंदरूनी असंतुष्टों के साथ भी सुलह करनी होगी। अमित शाह के फैसले भी सवालों के घेरे में आएंगे।

अब विधानसभा चुनावों पर रहेंगी नजरें

इकोनॉमी के दृष्टिकोण से सकारात्मक बात यह है कि भाजपा के प्रमुख सहयोगियों में से कोई भी- चाहे वह तेलुगु देशम हो या जदयू या शिवसेना या लोजपा- विकास विरोधी या अति-लोकलुभावनवादी नहीं है। इसलिए नीतिगत रुख में बड़े बदलाव की जरूरत नहीं होगी, हालांकि आंध्र प्रदेश और बिहार की ओर केंद्रीय संसाधनों का रुख मोड़ने के लिए रियायतें जरूर देनी होंगी।

बड़ी परीक्षा संसद में नहीं, बल्कि इस साल होने वाले महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के विधानसभा चुनावों में होगी, जहां लोकसभा चुनाव में भाजपा और सहयोगियों को हार का सामना करना पड़ा है। लेकिन एक बात जरूर उभरकर सामने आती है। भाजपा के खराब प्रदर्शन का मुख्य कारण उसके खिलाफ अल्पसंख्यक वोटों का पूरी तरह से एकजुट हो जाना और हिंदू जातियों का उसके इंद्रधनुषी-गठबंधन में विभाजित हो जाना है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

खबरें और भी हैं…
Share This Article
Leave a comment