Pt. Vijayshankar Mehta’s column – Try to uncover the saintliness within you | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: अपने भीतर के संतत्व को उजागर करने का प्रयास हो

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1 घंटे पहले

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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar

पं. विजयशंकर मेहता

अयोध्या की अमराई में श्रीराम और भरत के बीच सवाल और जवाब हो रहे थे। भरत जिज्ञासा प्रकट कर रहे थे और राम समाधान दे रहे थे। भरत ने श्रीराम से कहा कि वेद और पुराण में संतों की बड़ी महिमा गाई गई है। आप भी उनकी बहुत बढ़ाई करते हैं।

‘सुना चहउं प्रभु तिन्ह कर लच्छन। कृपासिंधु गुन ग्यान बिचच्छन।’ ‘मैं उनके लक्षण सुनना चाहता हूं। आप कृपा के समुद्र हैं और गुण तथा ज्ञान में अत्यंत निपुण हैं।’ वैसे तो साधु और संत व्यक्तित्व हैं। लेकिन गहरे में जाएं तो ये एक जीवनशैली है। इसके लिए ना तो घर छोड़ना है ना ही कोई भगवा कपड़े पहनना हैं।

आप अपने परिवार के, व्यापार के सारे काम करते हुए भी संत हो सकते हैं। और संत के लक्षण राम इसलिए बता सकते हैं कि भरत ने राम जी के लिए तीन बातें बोलीं। कृपा के समुद्र, गुण और ज्ञान में निपुण। आप उदार हैं, ज्ञान तो आपमें है ही, पर सद्गुण भी उतरे।

शिक्षा के साथ संस्कार, और इसके साथ व्यक्ति यदि दूसरों के लिए हितकारी दृष्टि रखे, तो वो संत है। इसलिए हमें प्रयास करना चाहिए कि हम जो भी बन रहे हैं, वो तो बनें ही। लेकिन अपने भीतर जो एक संत जन्म से ही भगवान ने दिया है, उसको भी उजागर करें।

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