Pt. Vijayshankar Mehta’s column – Start looking at the scene of life properly | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: जीवन के दृश्य को ठीक से देखना शुरू करें

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4 दिन पहले

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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar

पं. विजयशंकर मेहता

इंसान की जिंदगी एक ही समय में फुटबॉल या वॉलीबॉल की तरह हो जाती है। अब आप कैसे खेलते हैं, यह आपके ऊपर निर्भर है। खेल की सबसे बड़ी विशेषता हार-जीत नहीं, उमंग और उत्साह है। क्योंकि खेलने वाला जानता है कि कोई एक जीतेगा, कोई एक हारेगा। जो हारेगा, वो भी शुरुआत में उत्साह बनाए रखता है।

हमें जीवन को इसी तरह लेना होगा। खिलाड़ियों को बीच-बीच में जो विश्राम दिया जाता है, वैसा हम भी लेते रहें। जब अपने काम में तनाव-दबाव हो, तो चलते-फिरते कुछ प्रयोग करिए, उसमें एक गहरी सांस का प्रयोग है। गहरी सांस लीजिए, फिर थोड़ा शरीर को तानिए, जिसको स्ट्रेचिंग कहते हैं। ताजी हवा जहां से मिल सके, लीजिए। और ये सब न भी कर सकें, तो एक काम जरूर करिए। कुछ देर आंखें बंद करके दृष्टि को विराम दीजिए।

आंखें बंद होंगी, तो भीतर दृश्य चालू हो जाएंगे। इसलिए आंखें बंद करने का अर्थ है, सिर्फ बाहर से ही नहीं, भीतर भी देखने से रोकना है। जैसे ही आप ऐसा करते हैं, परिणाम की चिंता से कट जाते हैं। आप गहराई तक जिंदगी का विपरीत देख सकेंगे और उससे निराश नहीं होंगे। क्योंकि यह तो तय है कि जीवन ऐसे-ऐसे विपरीत दृश्य दिखाता है कि मनुष्य को भ्रम हो जाता है। सावधान रहिए, जीवन के दृश्य को ठीक से देखें।

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