Prof. Chetan Singh Solanki’s column: Global warming will not be reduced by just planting trees | प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम: केवल पेड़ लगाने से ही कम नहीं होगी ग्लोबल वार्मिंग

Admin@KhabarAbhiTakLive
6 Min Read


  • Hindi News
  • Opinion
  • Prof. Chetan Singh Solanki’s Column: Global Warming Will Not Be Reduced By Just Planting Trees

5 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर, संस्थापक, एनर्जी स्वराज फाउंडेशन - Dainik Bhaskar

प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर, संस्थापक, एनर्जी स्वराज फाउंडेशन

पेड़ लगाना यकीनन बहुत जरूरी है और हम सभी को इसे नियमित रूप से करना चाहिए। यह हमारे और हमारे प्लैनेट के लिए भी अच्छा है। इससे कार्बन को कम करने, ऑक्सीजन के उत्पादन, जैव विविधता को बनाए रखने, मिट्टी की स्थिरता और जल-चक्र के रेगुलेशन में मदद मिलती है। अभी 10 दिन पहले ही, मैंने अपने 50वें जन्मदिन पर 50 पेड़ लगाए हैं।

लेकिन इससे पहले कि हम इस विश्व पर्यावरण दिवस पर पेड़ लगाने के बारे में सोचें, थोड़ा रुकिए! जैसे-जैसे हम 5 जून (विश्व पर्यावरण दिवस) के करीब पहुंच रहे हैं, सामाजिक संगठनों, प्रभावशाली लोगों, राजनेताओं, कॉर्पोरेट्स और व्यक्तियों को पेड़ लगाने की वकालत करते हुए देखना उत्साहजनक है।

यह अच्छा है, लेकिन पर्याप्त नहीं है। यह सोचना कि पौधे लगाने से पर्यावरण-क्षरण, वायु और जल प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी मौजूदा ज्वलंत समस्याओं का समाधान हो जाएगा, एक गलती है। अनेक युगों से, पृथ्वी की सतह और महासागरों ने स्वाभाविक रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (सीओटू) और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और अवशोषण किया है, जिससे वायुमंडल के भीतर एक नाजुक संतुलन बना रहा है।

यह प्राकृतिक चक्र मनुष्यों के अस्तित्व में आने से पहले का है। औद्योगीकरण की शुरुआत से पहले तक- यानी लगभग 1850 ई. में- सीओटू उत्सर्जन और अवशोषण की दर संतुलन में थी। लेकिन उसके बाद हमने कोयला, पेट्रोल, डीजल और एलपीजी जलाना शुरू कर दिया, जिससे सीओटू उत्सर्जन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

वर्तमान में, मानवीय गतिविधियां सालाना लगभग 38 अरब टन अतिरिक्त सीओटू का वायुमंडल में योगदान कर रही हैं। जब यह प्रवाह पृथ्वी की इसे अवशोषित करने की क्षमता को पार कर जाता है, तो प्राकृतिक कार्बन चक्र का नाजुक संतुलन बिगड़ जाता है। पृथ्वी की सतह और महासागर, साथ ही पौधे और पेड़, सीओटू को अवशोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

हालांकि औद्योगिक गतिविधियों से सीओटू उत्सर्जन की विशाल मात्रा इसे प्रभावी रूप से संतुलित करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करती है। नतीजतन, वातावरण में सीओटू की अधिकता हो जाती है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव होता है। पूर्व-औद्योगिक युग की तुलना में वर्तमान में वायुमंडल में 52% अतिरिक्त सीओटू है। इसका मतलब है कि उसमें प्लैनेट की गर्मी को ट्रैप करने की 52% अतिरिक्त क्षमता है।

वर्तमान की हीटवेव इसी अतिरिक्त गर्मी का परिणाम हैं। एक पेड़- आमतौर पर 10-15-20 साल के विकास के बाद- अपने जीवनकाल के दौरान लगभग 1 से 2 टन सीओटू अवशोषित करता है। मान लें कि 10 वर्षों में एक पेड़ लगभग 1 टन सीओटू सोखता है तो मानवीय गतिविधियों के कारण प्रतिवर्ष उत्सर्जित होने वाली अतिरिक्त 38 अरब टन सीओटू को संतुलित करने के लिए हमें हर साल लगभग 380 अरब पेड़ लगाने होंगे।

अगर मानें कि एक पेड़ के लिए लगभग 10 वर्ग मीटर क्षेत्र की आवश्यकता होती है तो प्रति वर्ष 380 अरब पेड़ लगाने के लिए लगभग 30.8 लाख वर्ग किलोमीटर यानी भारत के आकार से भी बड़े क्षेत्र की आवश्यकता होगी, और वह भी हर साल। व्यक्तियों के लिए भी, वृक्षारोपण के माध्यम से सीओटू की भरपाई करना संभव नहीं होगा। एसी जैसे सामान्य स्रोतों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन पर विचार करें।

एक टन का एयर कंडीशनर दिन में सिर्फ 8 घंटे चलने पर एक वर्ष में 2 टन से अधिक सीओटू उत्सर्जित करता है। इसलिए सिर्फ एक एसी के कार्बन फुटप्रिंट को संतुलित करने के लिए हमें सालाना 1 से 2 पेड़ लगाने की जरूरत है। वास्तव में उत्सर्जन की भरपाई के लिए पेड़ लगाने की नहीं, बल्कि 10-15 साल तक उनका पालन-पोषण करने की भी जरूरत है।

यदि कोई व्यक्ति वाहन का उपयोग करता है और प्रतिदिन सिर्फ 2 लीटर पेट्रोल या डीजल जलाता है, तो वह एक वर्ष में 2 टन से अधिक सीओटू उत्सर्जित करने के लिए जिम्मेदार होगा। इस प्रकार, वाहनों के उपयोग के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए भी सालाना 1 से 2 नए पेड़ लगाना होंगे।

आधुनिक युग में, व्यक्ति प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा और सामग्रियों का उपभोग करते हैं। केवल पेड़ लगाकर पर्यावरण पर पड़ने वाले उनके प्रभाव को कम करने का प्रयास लगभग असंभव होगा। हर किसी के लिए आवश्यक मात्रा में पेड़ लगाना और उनकी देखभाल करना संभव नहीं है, न ही इस तरह के प्रयासों के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध है।

इससे ज्यादा समझदारी का दृष्टिकोण तो यह होगा कि ‘रोकथाम इलाज से बेहतर है!’ यानी हमें पर्यावरण-संबंधी चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिए कार्बन उत्सर्जन और संसाधनों की खपत को कम करने के व्यापक उपायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

खबरें और भी हैं…
Share This Article
Leave a comment