N. Raghuraman’s column – Will an 11-minute ‘snack’ keep you fit? | एन. रघुरामन का कॉलम: 11 मिनट का ‘स्नैक’ आपको फिट रखेगा?

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9 मिनट पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

इस सप्ताह की शुरुआत में मैं जयपुर हवाई अड्डे पर बोर्डिंग की घोषणा होने से 10 मिनट पहले बोर्डिंग गेट पर पहुंच गया था। आम तौर पर जब सैकड़ों यात्री कतार में इंतजार कर रहे होते हैं तो उस जगह पर शोर होता है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि वहां पर खामोशी थी। क्योंकि एक बच्चा इधर-उधर दौड़ते हुए गिनती कर रहा था कि कतार में कितने लोग खड़े हैं, उनके पास कितने बैगेज हैं या उनमें से कितने लोगों ने सफेद कपड़े पहने हैं आदि।

वास्तव में जब उसने एक यात्री- जो फोन पर बात करते हुए आगे बढ़ रहे थे- से कहा कि ‘अंकल, मेरा हिसाब गड़बड़ा रहा है, आप यहीं खड़े रहें’, तो पूरी भीड़ जोर से हंस पड़ी। उस यात्री ने मुस्कराते हुए बच्चे से सॉरी कहा और जब तक उसने अपना हिसाब पूरा नहीं कर लिया तब तक वहीं खड़े रहे।

उन्होंने जानबूझकर उससे वहां से जाने की अनुमति भी मांगी! जब भी वो बच्चा अपनी मां के पास अनुमति लेने जाता- जो उसकी चार महीने की बहन को हाथों में लिए हुए थीं- तो वो आंखों से संकेत करके बता देतीं कि उसकी गणना सही है या गलत।

संक्षेप में, कई लोगों को पता ही नहीं चला कि प्रतीक्षा के वे 10 मिनट मनोरंजन और हंसी-मजाक में कैसे बीत गए। और आखिरकार जब बोर्डिंग घोषणा हुई तो उसके पिता ने जोर से कहा कि तुम्हारा ‘स्नैकिंग टाइम’ पूरा हुआ, जल्दी से आ जाओ। यह सुनकर कई लोगों की त्योरियां चढ़ गईं, क्योंकि उन दस मिनटों में लड़के ने कोई भी स्नैक नहीं खाया था। शायद लड़के के मनोवैज्ञानिक पिता के लिए यह बच्चे का ‘मैथ्स स्नैकिंग टाइम’ रहा होगा!​

वाह, बच्चे में गणित नामक विषय के प्रति प्रेम जगाने का क्या ही बेहतरीन आइडिया है! जाहिर तौर पर वे पिता बच्चे के लिए किसी विषय में रुचि पैदा करने के लिए उसकी स्नैकिंग का समय देते हैं। पिता ने कहा, ‘चूंकि मेरे बेटे ने गणित में कम रुचि दिखाई थी, इसलिए मैंने उसे ‘मैथ्स स्नैकिंग’ सिखाई, जिसे वह खुद करता है और पिछले कुछ महीनों में उसे यह विषय पसंद आ गया है।’

जब मैंने पूछा कि उन्हें यह विचार कैसे आया, तो उन्होंने मुझे यूके की लवीना मेहता की पुस्तक ‘द फील गुड फिक्स’ दिखाई। उन्होंने कहा, यह पुस्तक ‘एक्सरसाइज स्नैकिंग’ की वकालत करती है। जब मैंने वो दो शब्द सुने तो मुझे लगा कि इसका खाने से कोई लेना-देना होगा।

मुझे यह समझने में कुछ मिनट लगे कि दरअसल यह किताब उन छोटी-छोटी गतिविधियों की अनुशंसा करती है, जिन्हें दिन भर नियमित रूप से करने से आप अच्छा महसूस करते हैं। लेखिका का कहना है कि उत्कृष्ट दिखने और महसूस करने के लिए जिम में घंटों मेहनत करने के बजाय दिन में 11 मिनट का व्यायाम ही काफी है।

शोध के अनुसार एक लंबे वर्कआउट की तुलना में यह पद्धति अविश्वसनीय रूप से स्वास्थ्य-लाभ देने वाली साबित हुई है। लवीना का दावा है कि कम से कम 11 मिनट तक व्यायाम करने से दस में से एक असामयिक मृत्यु, 20 में से एक हृदय संबंधी बीमारी और कैंसर के लगभग 30 मामलों में से एक से होने वाली मृत्यु को टाला जा सकता है।

वे दांतों को ब्रश करते समय बैलेंसिंग करती हैं, टीवी देखते समय स्क्वैटिंग करती हैं, योग करते समय अपने बच्चे को पेट पर बिठाने की सलाह देती हैं, यह सब उनके लिए एक खेल भी बन जाता है और मनोरंजन भी। लवीना का आदर्श वाक्य है- ‘व्यायाम बुद्धिमत्ता के लिए करो, दिखावे के लिए नहीं।’

उनका सुझाव है कि डम्बल कमरे की सजावट का हिस्सा होना चाहिए और मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए कमरे को पार करते समय घर के प्रत्येक सदस्य को इसे कम से कम दो मिनट के लिए उठाना चाहिए। और जब इस सप्ताह घर लौटने के बाद मैंने ऐसा किया, तो मुझे अच्छा महसूस हुआ, हालांकि मैं जानता हूं कि मसल्स एक दिन में नहीं बनाई जा सकतीं।

फंडा यह है कि अगर आप एक फिट शरीर और फिट दिमाग चाहते हैं तो दिन में और हर दिन अपने शरीर और दिमाग के लिए ‘स्नैकिंग’ करने से आपकी फिटनेस एक दूसरे ही स्तर पर जा सकती है।

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