N. Raghuraman’s column – Is ‘agoraphobia’ causing people to behave rudely? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्या ‘एगोराफोबिया’ के कारण लोग बेरुखी से पेश आ रहे हैं?

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4 दिन पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

एक हालिया वाकिया है। अपने पुराने ग्राहक के बाल काटते हुए हेयर ड्रेसर के मोबाइल पर फोन आया। फोन सुनने के बाद उसने ग्राहक के आधे कटे बाल बीच में छोड़ दिए और एक घंटे बाद वापस आने के लिए कहा, क्योंकि उसे कुछ अर्जेंट काम से भागना था।

ग्राहक ने पूछा कि तुम चाहते हो कि मैं ऐसे आधे कटे बालों के साथ घर जाऊं और एक घंटे में लौटूं? तब हेयरड्रेसर ने बेरुखी से कहा, ‘आप किसी से टोपी उधार ले सकते हैं’ और ये कहकर निकल गया।

एक अन्य घटनाक्रम में टिक टॉक पर एक मां का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें थोड़ी कहासुनी के बाद एक मां ने दूसरी मां के बच्चे की चंद घंटे की देखभाल करने के लिए 34 डॉलर का बिल भेज दिया। इस बिल में 3 डॉलर बिस्किट का, 1 डॉलर बच्चे के हाथ धोने में इस्तेमाल साबुन का और 5 डॉलर वीडियो गेम खेलने में इस्तेमाल हुई बिजली का जोड़ा गया।

अप्रैल में अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान घटे ये घटनाक्रम इस सोमवार को मुझे तब याद आ गए, जब जयपुर एयरपोर्ट पर ओला की सर्विस लेते हुए एक अप्रिय स्थिति से मेरा सामना हुआ। मैं मुंबई की फ्लाइट से जयपुर एयरपोर्ट पर शाम 6.40 पर उतरा और टोंक रोड पर स्थित होटल जाने के लिए ओला कैब बुक की।

चंद सेकंड बाद श्याम सुंदर ड्राइवर के नाम से एसयूवी बुक होने का मैसेज आया। 20 सेकंड में उसका फोन आया और पूछा कि आप कैसे भुगतान करेंगे- कैश या एप को सीधा ऑनलाइन। जब मैंने कहा कि ऑनलाइन दूंगा, तो उसने झट से फोन काट दिया और ओला से फोन आया कि ड्राइवर ने ट्रिप कैंसल कर दी है।

पांच मिनट बाद कंपनी से फोन आया और ड्राइवर के बुरे बर्ताव के कारण गिनाने लगे। अधिकारियों ने कहा कि वे पूरे देश में ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं और कोई भी ड्राइवर बिजनेस देने के लिए ओला को किसी भी तरह का कमीशन नहीं देना चाहता। ड्राइवर्स यात्रियों से सीधा नकद भुगतान लेते हैं और पूरे देश में प्रति ड्राइवर 10 से 15 हजार रु. कमीशन लंबित है।

इसलिए जब भी ऑनलाइन भुगतान मिलता है तो ओला ने हर ट्रिप का 50% काटना शुरू कर दिया है ताकि पहले की शेष राशि वसूल सकें। यही कारण है कि ड्राइवर्स खाली बैठे रहेंगे पर ओला को सीधा ऑनलाइन भुगतान नहीं चाहते। जब अधिकारी ये बता रहे थे, तो मैंने देखा कि वही टैक्सी वाला चंद ग्राहकों की चाह में पांच चक्कर लगा चुका था। वो जब भी मेरे सामने से गुजरा, गुस्से वाला लुक दिया।

अगर हम ये मुद्दे किसी मनोविशेषज्ञ के संज्ञान में लाएं, तो वे इस व्यवहार का संभावित कारण ‘एगोराफोबिया’ बताएंगे। ये एेसी चिंता है, जब कोई व्यक्ति सार्वजनिक या भीड़-भाड़ वाली जगह पर होता है, जहां से बचना मुश्किल होता है, या मदद आसानी से उपलब्ध नहीं हो सकती है।

इस डर के चलते पैनिक अटैक या पैनिक जैसे लक्षण हो सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि एगोराफोबिया दर्दनाक बचपन, माता-पिता की मृत्यु, तलाक जैसी किसी घटना का अनुभव, या अवसाद, शराब, नशीली दवाओं के इस्तेमाल सहित नौकरी खोने के अलावा घर में सद्भाव की कमी से उत्पन्न होता है। और अगर आप छोटे-मोटे और मेहनती काम करने वाले वर्ग के लोगों में ऐसा व्यवहार दिखेगा, जिनके घरों में सुकून या सद्भावना की कमी होने की आशंका ज्यादा है। इसलिए पहले की तुलना में आजकल ऐसे अप्रिय घटनाक्रम कुछ ज्यादा हो रहे हैं।

फंडा यह है कि ‘एगोराफोबिया’ किसी भी व्यक्ति को अपने प्राकृतिक व्यवहार की तुलना में ज्यादा बेरुखा बना सकता है, इसलिए बेहतर होगा कि अपनी पीढ़ी को गैर-द्वेषपूर्ण या कटुता मुक्त वातावरण देकर सुरक्षित रखें।

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