45 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर
- कॉपी लिंक
हर किसी का एक ही सवाल है- ये क्या हो गया? कैसे हो गया? जवाब सीधा- सा है- यूपी ने गच्चा दे दिया। इस जवाब से फिर सवाल उठता है- यूपी ने गच्चा क्यों दिया? दरअसल, यूपी में जिस मायावती को भाजपा अपना प्लस प्वाइंट मान रही थी, उन्हीं की बसपा ने खेला कर दिया। बसपा को एक भी सीट नहीं मिली लेकिन वो कांग्रेस और सपा की वोट कटवा भी साबित नहीं हुई।
भाजपा को उम्मीद थी कि बसपा, सपा और कांग्रेस के वोट काटेगी और परिणाम स्वरूप सीटें भाजपा की झोली में आ जाएँगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बसपा के वोटर शांत हो गए। बल्कि कहना यह चाहिए कि वे कांग्रेस और सपा की तरफ़ चले गए। सबूत सामने है – चार- चार लाख वोटों की गिनती हो जाने तक बसपा प्रत्याशियों को पाँच हज़ार वोट तक के लाले थे। यही वजह थी कि यहाँ राहुल गांधी और अखिलेश यादव नाम के दो लड़कों की जय जयकार हो गई। बार- बार इन दोनों को शहज़ादे- शहज़ादे कहकर चिढ़ाना भी लगता है भाजपा को भारी पड़ा।
चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने विक्ट्री साइन दिखाते हुए पोज दिया।
जहां तक पश्चिम बंगाल का सवाल है, वहाँ के ज़्यादा वोटिंग प्रतिशत को देखकर भाजपा ओवर कान्फिडेंस में थी। उसे लग रहा था कि अस्सी प्रतिशत से ज़्यादा वोटिंग वाली तमाम सीटें पके सेब की तरह उसकी झोली में आ गिरेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ज़्यादा वोटिंग ने आख़िरकार ममता की झोली ही भरी और तृणमूल कांग्रेस पहले से कहीं अधिक सीटों पर जीत गई जबकि भाजपा पहले से आधी रह गई।
फिर राजस्थान में क्या हुआ? यहाँ दो बार से कांग्रेस की कमान जिनके पास भी थी, पार्टी ज़ीरो पर रही थी लेकिन गोविंद सिंह डोटासरा के नेतृत्व ने इस बार कमाल कर दिया। प्रत्याशियों का चयन ही इस बार सबसे महत्वपूर्ण था, जिसमें कोई गलती नहीं की गई। यही वजह रही कि भाजपा को यूपी और महाराष्ट्र के बाद सबसे बड़ा झटका राजस्थान में लगा।
हरियाणा में सरकार का चेहरा बदलकर भाजपा ने संभावित हार से पार पाने की कोशिश ज़रूर की थी, लेकिन वहाँ भी बात नहीं बनी। दस में से पाँच सीटें कांग्रेस लूट ले गई। पंजाब में जहां पिछली बार भाजपा की दो सीटें थीं, इस बार सूपड़ा साफ़ हो गया। महाराष्ट्र में लोगों ने उद्धव ठाकरे और भतीजे से धोखा खाए शरद पवार को सहानुभूति वोट दे दिया।
भाजपा के पाले में गए अजित दादा पवार की पार्टी को तो मात्र एक सीट पर ही संतोष करना पड़ा। उद्धव की सेना ने नौ- दस सीटें हासिल करके कमाल कर दिखाया। साफ़ दिखाई दे रहा है कि महाराष्ट्र की जनता ने तोड़फोड़ की राजनीति को सिरे से नकार दिया है। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह पहला मौक़ा होगा जब उन्हें गठबंधन की सरकार का नेतृत्व करना पड़ेगा।
समर्थक दल भी ऐसे हैं नीतीश कुमार (जद यू) और चंद्रबाबू नायडू ( टीटीपी), जिनके विचार और रीति- नीति भाजपा से बहुत ज़्यादा मेल नहीं खाते। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार के परिणामों को देखने के बाद कोई किसी एग्जिट पोल पर भरोसा तो नहीं ही करेगा।
लोकसभा चुनाव 2024 की ताजा खबरें, रैली, बयान, मुद्दे, इंटरव्यू और डीटेल एनालिसिस के लिए दैनिक भास्कर ऐप डाउनलोड करें। 543 सीटों की डीटेल, प्रत्याशी, वोटिंग और ताजा जानकारी एक क्लिक पर।