India BBNJ Agreement; Biodiversity Beyond National Jurisdiction | अंबिका हीरानंदानी का कॉलम: समुद्री जैव विविधता की रक्षा के लिए भारत का महत्वपूर्ण कदम

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16 मिनट पहले

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अम्बिका हीरानंदानी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से एम-फिल - Dainik Bhaskar

अम्बिका हीरानंदानी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से एम-फिल

भारत ने ‘बायोडायवर्सिटी बियॉन्ड नेशनल ज्यूरिस्डिक्शन एग्रीमेंट’(बीबीएनजे) यानी राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता समझौते पर हस्ताक्षर को अनुमति दे दी है। ‘हाई सीज़’ इलाके में जैव विविधता को संरक्षित करने की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम है। ये विशाल समुद्री क्षेत्र, किसी भी देश के अधिकार क्षेत्र से परे, एक प्रजाति के रूप में हमारे अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं।

बीबीएनजे समझौता, या ‘हाई सीज़ संधि’, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (यूएनसीएलओएस) के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसका उद्देश्य इन इलाकों में किसी देश की संप्रभु सीमाओं के संसाधनों के दावे को दरकिनार करते हुए समुद्री जैव विविधता के दीर्घकालिक संरक्षण और इस्तेमाल का सुनिश्चित करना है।

यह समझौता इस बात की वकालत करता है इसका लाभ सबको मिले वहीं, साथ ही यह पारंपरिक ज्ञान और वैज्ञानिक विशेषज्ञता के आधार पर पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा दे।

भारत का पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय कार्यान्वयन प्रयासों का नेतृत्व करेगा, जो वैश्विक पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के लिए राष्ट्र के दृढ़ समर्पण को दर्शाता है। पृथ्वी विज्ञान और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने पर्यावरण शासन में भारत के सक्रिय रुख और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए इसकी प्रतिबद्धता को जाहिर किया।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ एम रविचंद्रन ने भारत के लिए रणनीतिक लाभों पर प्रकाश डाला, जिसमें समुद्री संरक्षण के प्रयासों में वृद्धि, वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए विस्तारित अवसर और प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण में प्रगति शामिल है।

भारत द्वारा बीबीएनजे समझौते पर हस्ताक्षर करना यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है कि हमारे महासागर पर्यावरण अनुकूल और सुदृढ़ बने रहें। यह कई एसडीजी, विशेष रूप से एसडीजी 14 (पानी के नीचे जीवन) को प्राप्त करने में भी योगदान देगा।

बीबीएनजे समझौता, समुद्री खनन और मछली स्टॉक को नियंत्रित करने वाले समझौतों के साथ, यूएनसीएलओएस के तहत तीसरा कार्यान्वयन समझौता होगा। यूएनसीएलओएस स्वयं वैश्विक समुद्री व्यवस्था स्थापित करने, समुद्री सीमाओं को परिभाषित करने और समुद्री संसाधनों से संबंधित विवादों को हल करने के लिए मूलभूत है।

160 से ज्यादा देशों ने यूएनसीएलओएस पर औपचारिक सहमति दी है और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून में इसका महत्व निर्विवाद है।

दो दशकों के विचार-विमर्श के बाद जून 2023 में बीबीएनजे समझौते को अपनाने पर सहमति बनी। राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे (एबीएनजे) क्षेत्रों में समुद्री जैव विविधता की रक्षा के लिए एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय प्रयास का उदाहरण है।

91 देशों के हस्ताक्षर और 2024 के मध्य तक आठ देशों की इस पर पुष्टि के साथ, समझौते का वैश्विक स्वीकृति निर्विवाद है, जिसका लक्ष्य मजबूत प्रबंधन टूल्स और व्यापक पर्यावरणीय आकलन के माध्यम से पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को कम करना है।

बीबीएनजे समझौते को भारत का समर्थन अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) से परे सतत विकास और समुद्री जैव विविधता संरक्षण के लिए अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। यह समुद्री संसाधनों की सुरक्षा और उनके सतत उपयोग को सुनिश्चित करने के वैश्विक प्रयासों के साथ तालमेल बैठाता है, इससे महासागरों के संरक्षण और न्यायसंगत संसाधन प्रबंधन में सामूहिक वैश्विक कदम के लिए एक मिसाल कायम होती है।

जैसे-जैसे इसके कार्यान्वयन की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, इसके प्रति आधिकारिक सहमतियों से जुड़ी जटिलताओं और इनका प्रचालन सर्वोपरि हो जाता है।

न केवल जैव विविधता संरक्षण लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बल्कि समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (एमपीए) को स्थापित करने और समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से संबंधित उचित लाभ-साझाकरण की सुविधा के लिए भी तेजी से वैश्विक समर्थन आवश्यक है।

वर्ष 2030 तक 30% समुद्री वातावरण की सुरक्षा और एबीएनजे में समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (एमपीए) के निर्माण के कुनमिंग-मॉन्ट्रियल जैव विविधता फ्रेमवर्क के उद्देश्य को पूरा करने के लिए यह जरूरी है और इसका केंद्रीय हिस्सा हैं, जहां वर्तमान सुरक्षा उपाय नाकाफी हैं।

इसके अधिनियमन के बाद, समझौते को एक वर्ष के भीतर इससे संबंधित देश या संस्थाओं को एक कांफ्रेंस (सीओपी) आयोजित करने की आवश्यकता होती है।इसे लागू करने में जरूरी वित्तीय मदद और सहायक निकायों की स्थापना के लिए सीओपी जिम्मेदार होगा।

ये निकाय एमपीए, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन, क्षमता निर्माण और समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से जुड़े लाभों के समान साझाकरण पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

जबकि बीबीएनजे समझौता अंतरराष्ट्रीय महासागर शासन में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रतीक है, इसकी प्रभावशीलता इस बात पर टिकी है कि इसकी बाधाएं दूर करने और प्रतिबद्धताओं को मूर्त कार्यों में बदलने में हम कितने संजीदा हैं।

एबीएनजे में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और हमारे महासागरों के लिए एक स्थायी भविष्य का खाका तैयार करने के अपने जनादेश को पूरा करने के लिए तत्काल वैश्विक कार्रवाई अनिवार्य है। भारत का सक्रिय समर्थन वैश्विक समुद्री संरक्षण प्रयासों में अपने नेतृत्व का उदाहरण है और एक साझा पारिस्थितिक अनिवार्यता की दिशा में एकीकृत अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का मार्ग प्रशस्त करता है।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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