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- Dr. Seema Javed’s Column Development Is Becoming A Challenge In The Himalayan Region
15 घंटे पहले
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डॉ. सीमा जावेद पर्यावरणविद, जलवायु परिवर्तन एक्सपर्ट
जोशीमठ डरावने संकेत दे रहा है। मुसीबत सिर्फ इस इलाके में नहीं बल्कि खतरा पूरे हिमालयीन क्षेत्र के लिए है। जोशीमठ, बद्रीनाथ और केदारनाथ का प्रवेश द्वार होने के लिहाज से हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
यह तीन महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों- हेमकुंड साहिब, बद्रीनाथ और शंकराचार्य मंदिर जाने का रास्ता है। चार धाम यात्रा करने वालों के लिए भी यही रास्ता है। इसलिए इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में योजनाबद्ध तरीके से निर्माण होना चाहिए। लेकिन यहां बेतरतीबी से हो रहा विकास मुसीबत बनता जा रहा है।
हिमालयी इलाके भूस्खलन से अस्थिर होकर अपरिवर्तनीय क्षय में प्रवेश कर रहे हैं। इन इलाकों में बेतरतीब और बिना सोचे-समझे हुए शहरीकरण, बदलती जलवायु और हमारी अक्रियाशीलता इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है।
शहरीकरण के चलते पहाड़ों पर कंक्रीट में बदल रहे लकड़ी के घर, अनप्लांड कंस्ट्रक्शन, टूरिस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए बढ़ रहे होटल-रिजॉर्ट आदि में बेतहाशा इजाफा, जल विद्युत परियोजनाओं के चलते नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा, पर्यावरण के लिहाज इस संवेदनशील क्षेत्र में बेतरतीब निर्माण और नियमों की अवहेलना का एक और नमूना है।
हिमालय का दरकना जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम के बिगड़े तेवरों की मिली जुली कहानी भी बयां करता है, जो प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों है। जलवायु परिवर्तन के कारण वायुमंडल में नमी की मात्रा बढ़ रही है, जिससे भारी बारिश और खतरनाक हीटवेव आ रही हैं।
इस साल उत्तराखंड ने पिछले दो महीनों में चरम मौसम की स्थितियों का सामना किया है। देहरादून में 9 जून से 20 जून तक लगातार 11 दिनों तक तापमान 40℃ डिग्री से अधिक रहा। वहीं, मई में भी शहर में आठ दिनों तक तापमान 40 डिग्री ℃से ऊपर दर्ज किया गया। मुक्तेश्वर में मई में कम से कम पांच मौकों पर तापमान लगभग 30℃ डिग्री रहा, जो पहाड़ी इलाकों में हीटवेव का संकेत है।
जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और लंबे सूखे की अवधि ने जंगलों में आग की घटनाओं को भी बढ़ा दिया है। जून में जहां अधिकतम तापमान ने रिकॉर्ड तोड़े, वहीं जुलाई में मूसलधार मानसूनी बारिश ने बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति पैदा कर दी।
1 जून से 10 जुलाई तक उत्तराखंड में कुल बारिश 328.6 मिमी दर्ज की गई, जो सामान्य 295.4 मिमी से 11% अधिक है। इस समय, राज्य के सभी 13 जिलों में जुलाई के महीने में बारिश का अधिशेष दर्ज किया गया है।
देश का एक बड़ा हिस्सा सिस्मिक जोन-5 में आता है, जो भूकंप की दृष्टि से सबसे अधिक संवेदनशील है। इसमें उत्तराखंड भी शामिल है। पर्वतीय क्षेत्रों की प्राकृतिक संपदा का दोहन तो किया ही गया, वहां से निकलने वाली नदियों से भी छेड़छाड़ की गई।
उत्तराखंड कोई अकेला राज्य नहीं है, जहां पर घरों और अन्य भवनों के निर्माण में सिविल इंजीनियरिंग के मानकों की धज्जियां उड़ाई गई हों। उत्तराखंड जैसी ही कहानी हिमाचल की भी है। पर्वतीय क्षेत्रों में किए जाने वाले अंधाधुंध निर्माण को लेकर पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों ने बार-बार आगाह करने की कोशिश की लेकिन ना तो वहां रहने वालों ने और ना स्थानीय सरकारों ने इस बारे में कोई खास तवज्जो दी।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)